अञ्जनमुस्तोशिरै: सराजकोशातकामलकचूण:।
कतकफलसमायुक्तैरयोग: कूपे प्रदातव्य:।।
कलुषं कटुकं लवणं विरसं सलिलं यदि वाशुभगन्धिभवेत्।
तदनेन भवत्यमलं सुरसं सुसुगन्धि गुणैरपरैश्य युतम्।।
– बृहत्संहिता – वराहमिहिर 54.121, 122
जल को साफ़ करने का अचूक उपाय
- भूगर्भ से प्राप्त जल में अनेक दोष जैसे जल का मैला होना, खारापन, कड़वापन, स्वाद में ठीक न लगना या गंध होना आदि हो सकते हैं।
- इस जल को शुद्ध, स्वादिष्ट एवं समस्त गुणों से युक्त बनाने के लिए पाँचवी-छठी सदी के प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने अपने ग्रंथ ‘बृहत्संहिता’ में एक प्राकृतिक विधि बताई।
- उन्होंने बताया कि अञ्जन, मुश्त, उशिर, राजकोशातक, आमलक, और कतक के चूर्ण को यदि जल में मिला दिया जाए तो वह समस्त दोषों से रहित एवं हो जाता है।
- आज घरों में जल को शुद्ध करने के लिए महँगे उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। ये उपकरण जल की गन्दगी को ही दूर नहीं करते अपितु उसके गुणों को भी नष्ट कर देते हैं और वहीं वराहमिहिर द्वारा बताए यह औषधीय प्रयोग दोषों का नाश एवं गुणों का संवर्धन एक साथ ‘एक पंथ दो काज’ की कहावत को चरितार्थ करने वाला है।