वैज्ञानिक और तार्किक चिन्तन का परिणाम: सनातन दृष्टि
|

वैज्ञानिक और तार्किक चिन्तन का परिणाम: सनातन दृष्टि

“संगच्छध्वं संवदध्वं, सं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे, सञ्जानाना उपासते।।” ऋग्वेद 10.191.2 “साथ चलने, एक स्वर में बोलने और एक दूसरे के मन को जानने वाला समाज ही अपने युग को बेहतर बनाने की सामर्थ्य से युक्त हो सकता है और ऐसे युग में जीने वाले स्वयं के लिए बेहतर वर्तमान और आने…

भूगर्भीय जल का अलवणीकरण (Desalination of Ground Water)
|

भूगर्भीय जल का अलवणीकरण (Desalination of Ground Water)

अञ्जनमुस्तोशिरै: सराजकोशातकामलकचूण:। कतकफलसमायुक्तैरयोग: कूपे प्रदातव्य:।। कलुषं कटुकं लवणं विरसं सलिलं यदि वाशुभगन्धिभवेत्। तदनेन भवत्यमलं सुरसं सुसुगन्धि गुणैरपरैश्य युतम्।। – बृहत्संहिता – वराहमिहिर 54.121, 122 जल को साफ़ करने का अचूक उपाय

वैदिक दृष्टि : जीवनीय, रक्षणीय और प्रेरणीय
|

वैदिक दृष्टि : जीवनीय, रक्षणीय और प्रेरणीय

“कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः। एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥” यजुर्वेद 40.2 “कर्म करते हुए सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करो” इस बात को सुनते ही हम उसकी अनुपालना में लग जाते हैं, अच्छी बात है लेकिन वैदिक दृष्टि यहीं समाप्त नहीं होती। ये कर्म कैसे हों? ये हमारे जीवन, उसकी सुरक्षा, संरक्षा…

नागार्जुन द्वारा लिखित उपन्यास “बटेसरनाथ” के संस्कृत अनुवाद “वटेश्वरनाथ:” की समीक्षा
| |

नागार्जुन द्वारा लिखित उपन्यास “बटेसरनाथ” के संस्कृत अनुवाद “वटेश्वरनाथ:” की समीक्षा

पुस्तक – वटेश्वरनाथः मूल लेखक – नागार्जुन (हिन्दी – बटेसरनाथ) संस्कृतानुवादक – डाॅ. हृषीकेश झा प्रकाशक – प्रत्नकीर्ति प्राच्य शोध संस्थान, वाराणसी प्रकाशन वर्ष – 2021 पृष्ठसंख्या – 8 +126 यदि यह कहना सच है कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है, तो यह कहना उसी सच को रेखांकित करना होगा कि नागार्जुन के…

नागार्जुन द्वारा लिखित ’’बलचनमा’’ का संस्कृत अनुवाद ’’बालचन्द्रः” : एक परिचय
| |

नागार्जुन द्वारा लिखित ’’बलचनमा’’ का संस्कृत अनुवाद ’’बालचन्द्रः” : एक परिचय

पुस्तक – बालचन्द्रः मूललेखक – नागार्जुन (हिन्दी – बलचनमा) संस्कृतानुवादक – डॉ. हृशीकेष झा प्रकाशक – संस्कृतभारती, नवदेहली प्रकाशन वर्ष – 2021 पृष्ठ संख्या – 6+132 प्रख्यात कवि और कथाकार नागार्जुन का एक सशक्त मूलतः हिन्दी में लिखा आंचलिक उपन्यास है ’’बलचनमा’’, जिसका संस्कृत अनुवाद ’’बालचन्द्रः’’ इस शीर्षक के साथ डॉ. हृषीकेश झा द्वारा किया…

भारतीय संस्कृति : एक अनुपम यात्रा (सोपान १)
|

भारतीय संस्कृति : एक अनुपम यात्रा (सोपान १)

भारतीय संस्कृति : एक अनुपम यात्रा – सोपान – 1 “भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे, संस्कृतं संस्कृतिस्तथा।।” भारत के भारत होने का मूल है संस्कृत और संस्कृति। “संस्कृति” जीवन का आधार है और “संस्कृत” उससे जुड़ने का सशक्त माध्यम। इन दोनों की पारस्परिक सुदृढता ही भारत को (भा+रत) “भा” अर्थात् ज्ञान रूपी प्रकाश में “रत” लगातार अग्रसर…

यान्त्रिक विज्ञान का आदिस्रोत
|

यान्त्रिक विज्ञान का आदिस्रोत

“एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः| स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्, पृथिव्यां सर्वमानवाः||” (मनुस्मृति  – महर्षि मनु 2.20) महर्षि मनु अपने उक्त कथन में स्पष्ट रूप से कहते हैं कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान से संयुक्त व्यक्तित्व समस्त विश्व के लिए चरित्र का सच्चा शिक्षक हो सकता है| महर्षि मनु का उक्त कथन प्राचीन भारतीय ज्ञानविज्ञान की उस खाई का वर्णन करता…

मौलिक और सार्वकालिक सिद्धान्तों का आदिस्रोत वेद
|

मौलिक और सार्वकालिक सिद्धान्तों का आदिस्रोत वेद

“यः कश्चित् कस्यचिद्धर्मो मनुना परिकीर्तितः। स सर्वोSभिहितो वेदे, सर्वज्ञानमयो हि सः।।” – मनुस्मृति – महर्षि मनु 2.7 अखिल ज्ञान का मूल वेदों को अखिल ज्ञान का मूल बताते हुए महर्षि मनु इन्हें समस्त ज्ञान का आगार कहते हैं और बड़ी ही सहजता, तार्किकता और दृढता के साथ वेदोक्त कार्यों को धर्म और इन वेदों में…