“एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः| स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्, पृथिव्यां सर्वमानवाः||”

(मनुस्मृति  – महर्षि मनु 2.20)

महर्षि मनु अपने उक्त कथन में स्पष्ट रूप से कहते हैं कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान से संयुक्त व्यक्तित्व समस्त विश्व के लिए चरित्र का सच्चा शिक्षक हो सकता है| महर्षि मनु का उक्त कथन प्राचीन भारतीय ज्ञानविज्ञान की उस खाई का वर्णन करता है जिसके कारण सदियों से भारत की भव्य और वैज्ञानिक विद्याओं का साक्षात्कार करने में हम असमर्थ रहे हैं।

Ancient Vimanas Ashutosh Pareek 1
Ancient-Vimanas-Ashutosh-Pareek

वर्तमान संसार यान्त्रिक उन्नति की उस परम अवस्था को प्राप्त करना चाहता है जो कभी नहीं आने वाली है और इसीलिए प्रसिद्ध विज्ञानी जे. ए. थॉम्सन लिखते हैं- “When minor mysteries disappear, greater mysteries stand confessed. Science never destroys wonder but only shifts it higher and deeper.” अर्थात् जब संसार के छोटे रहस्य खुल जाते हैं तो आगे बड़े रहस्य उपस्थित हो जाते हैं। विज्ञान कभी संसार के आश्चर्यों को मिटा नहीं सकता, प्रत्युत उन्हें अगाध अथाह बना देता है। (Introduction to Science – J.A. Thomson M.A.) संभवतः यही कारण था कि भारतीय संस्कृति अपने ज्ञान-विज्ञान की पराकाष्ठा को प्राप्त होने के उपरांत भी प्राकृतिक सामंजस्य का निदर्शन कराने वाली रही।

Mythology?

भारत के प्राचीन साहित्य, पुरातात्त्विक अवशेषों और विविध साक्ष्यों को पाश्चात्य विज्ञानियों ने Mythology” का ऐसा नाम दिया कि उन पर विश्वास करना, उनमें वैज्ञानिकता या तार्किकता का अन्वेषण करने का प्रयास करना एक अपराधी या पागल होने की अनुभूति कराने वाला माना जाने लगा और यही कारण था कि राइट ब्रदर्स के विमान उड़ाने से भी लगभग 25 वर्ष पूर्व जब महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भरद्वाज मुनि द्वारा लिखित “यन्त्रसर्वस्व” के वैमानिक प्रकरण के आधार पर विमान बनाने हेतु 1 लाख रुपए की सहायता माँगी तो किसी ने उन पर विश्वास नहीं किया और यहाँ तक कि इस घटना के लगभग 17 वर्ष पश्चात् जब शिवकर बापू जी तलपदे ने मुम्बई (बम्बई) के आकाश में विमान उड़ाकर दिखाया तो यह घटना भी इतिहास के पन्नों में ऐसे लुप्त हुई मानो यह घटित ही नहीं हुई हो।

Shivkar Bapuji Talpade Explained by Ashutosh Pareek
Shivkar Bapuji Talpade Explained by Ashutosh Pareek

आधुनिक विज्ञान के तकनीकी कौशल का प्रायः ऐसा कोई पक्ष नहीं, जिसका प्रतिरूप भारतीय प्राच्यविज्ञान में न मिलता हो। विविध कलाओं के संसार से सम्पूर्ण धरा को आलोकित करने वाला भारतीय ज्ञानविज्ञान समस्त विविध तकनीकी कौशल, भौतिक विज्ञान, रसायन-विज्ञान, वनस्पतिशास्त्र, जंतुविज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, गणितशास्त्र, वृष्टिविज्ञान, पर्यावरण एवं भूविज्ञान के साथ  यन्त्रोपकरणविज्ञान, विमानशास्त्र एवं शस्त्रास्त्रों के निर्माण का स्रोत बना रहा। जीवन के प्रायः सभी पक्षों पर इन ऋषि-मुनियों के विचार आज के आधुनिक चिंतकों को भी आश्चर्यचकित करने वाले हैं।

तैत्तिरीय संहिता में वायुविज्ञान के लिए वातयन्त्र, ऋतुविज्ञान के लिए ऋतु-यन्त्र, दिशा-विज्ञान के लिए दिग्यन्त्र, प्रकाशयन्त्रों के लिए तेजोयन्त्र और ऊर्जा-सम्बन्धी यन्त्रों के लिए ओजोयन्त्र एवं वाणी के विविध प्रयोगों के लिए वाग्यन्त्र का उल्लेख मिलता है – “वातानां यन्त्राय, ऋतूनां यन्त्राय, दिशां यन्त्राय, तेजसे यन्त्राय, ओजसे यन्त्राय। वाचो यन्तुर्यन्त्रेण।।” (तैत्तिरीय संहिता 1.6.1.21.7.10.3)

भारतीय यन्त्रविज्ञान की अनवरत धारा

भारतीय उद्योगकला, नौकाविज्ञान, सैन्यविज्ञान, कृषिविज्ञान, वृष्टिविज्ञान, भूगर्भविज्ञान, धातुविज्ञान, नक्षत्रविज्ञान, ओषधविज्ञान, रत्नविज्ञान, शिल्पविज्ञान, समुद्री-विज्ञान, सौर ऊर्जा, अग्निविद्या, भूगर्भशास्त्र आदि समस्त वैज्ञानिक पहलुओं को यज्ञ का ही प्रतिरूप माना गया है। भारतीय शिल्पविज्ञान के अन्तर्गत विविध शस्त्रास्त्रों के निर्माण का बहुतायत से वर्णन मिलता है। वास्तुशास्त्र के बेजोड़ उदाहरण तो आज भी मंदिर और विशाल प्रासाद व दुर्ग आदि के रूप में देखे जा सकते हैं।

वराहमिहिर के द्वारा वज्रलेप (प्लास्टर) की ऐसी तकनीकों का वर्णन किया गया है जो एक करोड़ वर्ष में भी न छूटे। रामसेतु, महरौली का लौहस्तम्भ, कोणार्क का सूर्य मंदिर, उत्तर भारत और दक्षिण के किले एवं पूजागृह भारतीय विज्ञान की ही देन हैं। यह सबकुछ तत्कालीन विकसित यन्त्रविज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं।
चारों वेद और उनके समस्त अंग-उपांग एवं उनके सिद्धान्तों को विस्तार देने वाले अनेक शास्त्रादि हमें भव्य ज्ञान-विज्ञान का दर्शन कराते हैं, स्थूल से सूक्ष्मता का अभिज्ञान कराते हैं, भले ही उनके प्रयोग के तरीके वर्तमान तरीकों से भिन्न थे, तथापि उनका विज्ञान पूरी तरह से वर्तमान विज्ञान को चुनोती देने वाला है।

अतः यह युग जो हम भूल चुके हैं उसे पुनः स्मरण करने और कराने का है; उसे कोरी कल्पना मानने वालों को उसकी वैज्ञानिकता से परिचित कराने का है; मृत पड़ी मानसिकता को जगाने और आगे बढ़ाने का है; और नई शिक्षा नीति के द्वारा नया इतिहास बनाने का है…. इति अलम्…।

– डॉ. आशुतोष पारीक की लेखनी से

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